Shri Mahalakshmi Chalisa – श्री महालक्ष्मी चालीसा

॥ दोहा ॥

जय जय श्री महालक्ष्मी,करूँ मात तव ध्यान।

सिद्ध काज मम किजिये,निज शिशु सेवक जान॥

॥ चौपाई ॥

नमो महा लक्ष्मी जय माता । तेरो नाम जगत विख्याता॥

आदि शक्ति हो मात भवानी । पूजत सब नर मुनि ज्ञानी॥

जगत पालिनी सब सुख करनी । निज जनहित भण्डारण भरनी॥

श्वेत कमल दल पर तव आसन । मात सुशोभित है पद्मासन॥

श्वेताम्बर अरू श्वेता भूषण । श्वेतही श्वेत सुसज्जित पुष्पन॥

शीश छत्र अति रूप विशाला । गल सोहे मुक्तन की माला॥

सुंदर सोहे कुंचित केशा । विमल नयन अरु अनुपम भेषा॥

कमलनाल समभुज तवचारि । सुरनर मुनिजनहित सुखकारी॥

अद्भूत छटा मात तव बानी । सकलविश्व कीन्हो सुखखानी॥

शांतिस्वभाव मृदुलतव भवानी । सकल विश्वकी हो सुखखानी॥

महालक्ष्मी धन्य हो माई । पंच तत्व में सृष्टि रचाई॥

जीव चराचर तुम उपजाए । पशु पक्षी नर नारी बनाए॥

क्षितितल अगणित वृक्ष जमाए । अमितरंग फल फूल सुहाए॥

छवि विलोक सुरमुनि नरनारी । करे सदा तव जय-जय कारी॥

सुरपति औ नरपत सब ध्यावैं । तेरे सम्मुख शीश नवावैं॥

चारहु वेदन तब यश गाया । महिमा अगम पार नहिं पाये॥

जापर करहु मातु तुम दाया । सोइ जग में धन्य कहाया॥

पल में राजाहि रंक बनाओ । रंक राव कर बिमल न लाओ॥

जिन घर करहु माततुम बासा । उनका यश हो विश्व प्रकाशा॥

जो ध्यावै से बहु सुख पावै । विमुख रहे हो दुख उठावै॥

महालक्ष्मी जन सुख दाई । ध्याऊं तुमको शीश नवाई॥

निज जन जानीमोहीं अपनाओ । सुखसम्पति दे दुख नसाओ॥

ॐ श्री-श्री जयसुखकी खानी । रिद्धिसिद्ध देउ मात जनजानी॥

ॐह्रीं-ॐह्रीं सब व्याधिहटाओ । जनउन विमल दृष्टिदर्शाओ॥

ॐक्लीं-ॐक्लीं शत्रुन क्षयकीजै । जनहित मात अभय वरदीजै॥

ॐ जयजयति जयजननी । सकल काज भक्तन के सरनी॥

ॐ नमो-नमो भवनिधि तारनी । तरणि भंवर से पार उतारनी॥

सुनहु मात यह विनय हमारी । पुरवहु आशन करहु अबारी॥

ऋणी दुखी जो तुमको ध्यावै । सो प्राणी सुख सम्पत्ति पावै॥

रोग ग्रसित जो ध्यावै कोई । ताकी निर्मल काया होई॥

विष्णु प्रिया जय-जय महारानी । महिमा अमित न जाय बखानी॥

पुत्रहीन जो ध्यान लगावै । पाये सुत अतिहि हुलसावै॥

त्राहि त्राहि शरणागत तेरी । करहु मात अब नेक न देरी॥

आवहु मात विलम्ब न कीजै । हृदय निवास भक्त बर दीजै॥

जानूं जप तप का नहिं भेवा । पार करो भवनिध वन खेवा॥

बिनवों बार-बार कर जोरी । पूरण आशा करहु अब मोरी॥

जानि दास मम संकट टारौ । सकल व्याधि से मोहिं उबारौ॥

जो तव सुरति रहै लव लाई । सो जग पावै सुयश बड़ाई॥

छायो यश तेरा संसारा । पावत शेष शम्भु नहिं पारा॥

गोविंद निशदिन शरण तिहारी । करहु पूरण अभिलाष हमारी॥

॥ दोहा ॥

महालक्ष्मी चालीसा,पढ़ै सुनै चित लाय।

ताहि पदारथ मिलै,अब कहै वेद अस गाय॥