Saraswati Mata Chalisa -सरस्वती माता चालीसा

॥ दोहा ॥

जनक जननि पद कमल रज,निज मस्तक पर धारि।

बन्दौं मातु सरस्वती,बुद्धि बल दे दातारि॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव,महिमा अमित अनंतु।

रामसागर के पाप को,मातु तुही अब हन्तु॥

॥ चौपाई ॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी । जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥

जय जय जय वीणाकर धारी । करती सदा सुहंस सवारी॥

रूप चतुर्भुजधारी माता । सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती । जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥

तबहि मातु ले निज अवतारा । पाप हीन करती महि तारा॥

बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी । तव प्रसाद जानै संसारा॥

रामायण जो रचे बनाई । आदि कवी की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता । तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

तुलसी सूर आदि विद्धाना । भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा । केवल कृपा आपकी अम्बा॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी । दुखित दीन निज दासहि जानी॥

पुत्र करै अपराध बहूता । तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥

राखु लाज जननी अब मेरी । विनय करूं बहु भाँति घनेरी॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा । कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

मधु कैटभ जो अति बलवाना । बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥

समर हजार पांच में घोरा । फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥

मातु सहाय भई तेहि काला । बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी । पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता । छण महुं संहारेउ तेहि माता॥

रक्तबीज से समरथ पापी । सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥

काटेउ सिर जिम कदली खम्बा । बार बार बिनवउं जगदंबा॥

जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा । छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥

भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई । रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा । सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥

को समरथ तव यश गुन गाना । निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी । जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी । नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा । दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता । कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित जो मारन चाहै । कानन में घेरे मृग नाहै॥

सागर मध्य पोत के भंगे । अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में । हो दरिद्र अथवा संकट में॥

नाम जपे मंगल सब होई । संशय इसमें करइ न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई । सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥

करै पाठ नित यह चालीसा । होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥

धूपादिक नैवेद्य चढावै । संकट रहित अवश्य हो जावै॥

भक्ति मातु की करै हमेशा । निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें शत बारा । बंदी पाश दूर हो सारा॥

करहु कृपा भवमुक्ति भवानी । मो कहं दास सदा निज जानी॥

॥ दोहा ॥

माता सूरज कान्ति तव,अंधकार मम रूप।

डूबन ते रक्षा करहु,परूं न मैं भव-कूप॥

बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि,सुनहु सरस्वति मातु।

अधम रामसागरहिं तुम,आश्रय देउ पुनातु॥